अमरसिंह जी की हत्या के समाचार नागौर पहुंचे तो उनकी एक रानी हाड़ी (बूंदी के हाड़ा शासकों की पुत्री) ने अमरसिंह जी की पार्थिव देह के साथ सत्ति होने की इच्छा जताई …. किन्तु …. रानी सत्ति हो कैसे ?? ….
अमरसिंह जी का शव तो आगरा किले में मुगलों की गिरफ्त में कैद पड़ा था …. हाड़ी को अपने विश्वासपात्र हरसोलाव (नागौर) के राठौड़ सरदार बल्लूजी चम्पावत की याद आयी ….
अमरसिंह को विपत्तिकाल में साथ देने का अपना कौल (वचन) निभाने बल्लूजी मेवाड़ महाराणा द्वारा प्राप्त घोड़े पे सवार हो के अपने 500 राजपूतों के साथ आगरा कूच कर गए ….

कूटनीति से आगरा किले में प्रवेश लेने के बाद बल्लूजी ने अमरसिंह जी के शव को अकेले मुगलों की कैद से निकाला और घोड़े पे सवार हो के किले के बुर्ज से नीचे छलांग लगा दी …. बल्लूजी ने किले के बाहर मौजूद अपने राजपूतों को अमरसिंह जी का शव सौंप के नागौर रवाना किया और अपने चंद मुट्ठी भर साथियों के साथ मुगल सेना को रोकने के लिए खुद दुबारा आगरा किले में प्रवेश कर गए ….

घोड़े की लगाम को मुंह मे दबाकर दोनों हाथों में तलवार ले के बल्लूजी मुगल सेना से भीड़ गए …. आगरा का किला राजपूतों के रक्त से लाल हो गया …. मुगलों से लड़ते हुए बल्लूजी भी आगरा के किले में खेत ( वीरगति ) हो गए …. लेकिन …. मुगलों को अमरसिंह के शव के आसपास नहीं फटकने दिया …. आगरा में यमुना नदी के तट पे सैन्य सम्मान के साथ बल्लूजी का दाह-संस्कार किया गया गया …. ( ये बल्लूजी की प्रथम वीरगति व प्रथम दाह-संस्कार था ) …. ( आगरा के किले के सामने यमुना नदी के तट पे बल्लूजी की छतरी व उनके घोड़े की समाधि आज भी अडिग खड़ी है/बनी हुई है ) …. (आगरा के किले के मुख्य द्वार को अमरसिंह द्वार कहा जाता है) …. समय एक वार फिर अपनी गति से आगे बढ़ने लगा …. देबारी (मेवाड़) के मैदान में आज मेवाड़ महाराणा राजसिंह जी और मुगल बादशाह औरंगजेब की सेनाएं आमने-सामने डटी थी …. संख्याबल में ज्यादा मुगल आज मुट्ठी भर मेवाड़ी शूरमाओं पे अत्यधिक भारी पड़ रहे थे ….

रणभूमि में विचलित महाराणा राजसिंह जी को आज बल्लूजी जी चम्पावत की याद आयी और विपत्तिकाल में साथ निभाने के बल्लूजी के वचन की याद आयी …. देबारी की घाटी में मेवाड़ महाराणा आंखे बंद कर के और हाथ जोड़ के अरदास करते हैं …. काश आज बल्लूजी जैसे योद्धा मेवाड़ की और से लड़ रहे होते …. कुछ पलों बाद मेवाड़ी और मुगल सेना भौचक्की रह गयी …. मेवाड़ नरेश द्वारा दिये घोड़े पे सवार बल्लूजी चम्पावत दोनों हाथों में तलवार लिए मुगल सेना पे कहर ढा रहे हैं!